..कुछ दिनों पहले यूँ ही बातचीत के दौरान मैंने अपनी तुलना पीपल के पेड़ और सिंथेटिक साड़ी से की थी उस दिन वो मजाक में कही एक बात थी पर आज इन फोटोग्राफ्स के साथ लिखने के लिए मुझे वो सबसे सार्थक बात लग रही है क्यूंकि इसमे संयोग से पीपल , सिंथेटिक साड़ी और मै तीनो ही हैं …

….गाड़ी की स्टेपनी जब तक बदली जा रही थी खाली जगह और हरियाली देख बाहर बैठने की इच्छा हो गयी और बस बैठ गए पेड़ के नीचे गिट्टी के ढेर पर …बड़े दिनों बाद नसीब हुई ये बेतकलुफी ..

…पीपल यूँ तो छाँव से ज्यादा किसी काम नहीं आता . छायादार पेड़ों की लकड़ी व्यावसायिक उपयोग की नहीं होती हैं और पीपल जिसे ‘अश्वत्थ ‘ भी कहा जाता है की काष्ठ तो हवन की समीधा बनाने लायक भी नहीं मानी जाती फिर भी इस पीपल की एक खासियत है इसकी जीवनी शक्ति पत्थर , दीवार , बंजर ज़मीन जहां कहीं भी बस थोड़ा आधार मिले तो जीवन की अन्य आवश्यकताएं जुटा जीवन का हरा रंग थोड़ी सी लालिमा के साथ बिखर जाता है छाँव बनकर ..

…वही हाल है सिंथेटिक साड़ियों का चाहे जितनी भी बेतरतीबी से रखा जाए , बेपरवाही से पहना जाए वक्त की मार कभी इनकी चमक फीकी नहीं कर पाती है , हर हाल में बेहतर …

आपमें से जो मुझे करीब से जानते हैं ,वो बेहतर समझ पा रहें होगे और इस बात से इत्तेफाक भी रखते होंगे कि “ मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी के आसाँ हो गयीं ….” 🙂 हालात चाहे जैसे भी रहें अपन वैसे के वैसे हैं .. क्या कहते हैं ???