… बच्चों के स्कूल में parenting पर एक seminar attend करने से दिन की शुरवात हुयी ….सेमिनार वैसा ही था जैसे आमतौर पर इस तरह के सेमीनार होते हैं वही आम समस्याएं बच्चे टीवी में कार्टून शो देखते हैं ? कहना नहीं मानते? खाना नहीं खाते ? जंक फ़ूड पसंद करते है ? पढाई में ध्यान नहीं है ? इसी तरह की आम समस्याएँ और बंधे-बंधाये से समाधान ….थोड़ी देर में ही उकता कर मैं बाहर निकल आयी । जाने क्यों मुझे लगता है कि मानवीय व्यव्हार को समझने , रिश्तो को निभाने या संबंधों की ऊष्मा को महसूस करने का का कोई निर्धारित फॉर्मूला नहीं हो सकता और बच्चों और अभिभावक के सम्बन्ध में तो बिलकुल भी नहीं, हर बच्चे का अपने अभिभावक से एक ख़ास रिश्ता होता है अगर इस रिश्ते में कोई समस्या हो भी तो उसका हल उनकी आपसी समझ और प्रेम से ही हो सकता है । अपने बच्चे को कैसे पाला जाए ये सबक हर माँ बाप अपने अनुभव से ही सीखते है…मै ऐसे सेमीनार , वर्कशॉप या लेक्चर्स के खिलाफ नहीं हूँ कुछ पेरेंट्स इन्हें बहुत ज़रूरी मानते है पर मुझे ये सब ज़्यादा सार्थक नहीं लगते हैं …खैर यह मेरी व्यक्तिगत राय है …

…..दिन भर ऑफिस के थकाऊ शेड्यूल के के बीच मेरे दिमाग में पेरेंटिंग तज़ुर्बे से आती है या ट्रेनिग और काउन्सलिंग से यह बात घूमती रही …. खुद का भी अभिभावक के तौर पर मूल्यांकन करने की कोशिश कर रही थी …पर मेरे लिए दिल्ली अभी दूर है .

शाम का समय सुबह से चल रही जदोजहद के अंत के लिए तय था शायद इसलिए लगभग टाल देने के बावजूद अंततः मैं ऑफिस से सीधे जया झा (पाण्डेय) के अभिभावकों से मिलने गयी जो अपने संक्षिप्त प्रवास पर आज शहर में हैं । मैंने चंदेरी कॉटन की इंडिगो ब्लू साड़ी पहनी हुयी है ..जल्दीबाज़ी में मोबाइल से ली गयी ये तस्वीर साड़ी के रंग और हमारे चेहरे के आत्मीय भावों को उतनी बेहतर ढंग से नहीं दिखा रही है , जैसे वे वास्तव में हैं …:)

……कई सालों बाद मैं उनसे मिल रही थी,जया की फ्रेंड लिस्ट जरा ज़्यादा ही लंबी है फिर भी वे आसानी से मुझे पहचान गए 🙂 उनसे बातचीत के दौरान भी मैं सुबह चल रही मेरी दिमागी कसरत में व्यस्त थी सो इस नज़रिये से मैं उनके विषय में सोचने लगी ।अभिभावकों की सफलता की कसौटी , बच्चे कैरियर में सफल और व्यक्तिगत जीवन में खुश हों ..,.के लिहाज़ से रिटायर्ड झा दंपती सफल अभिभावक है …. वे चार बेटियों के अभिभावक हैं ,उनकी बेहतरीन परवरिश का ही नतीजा है कि चारों बेटियां अपने कैरियर और परिवार में सफल हैं, सुखी हैं , खुश हैं. यह संतोष उनके चहरे पर साफ़ झलक रहा था …उन्हें पेरेंटिंग किसने सीखाई थी ? बेटियों को प्रगति के सभी अवसर देने के लिए किसने gender sensetize किया ? क्या इस सब के लिए किसीने उनकी काउन्सलिंग की थी ? शायद नहीं केवल अपनी परिपक्व और सुलझी हुयी सोच के कारण वो बेटियों को आत्मविश्वासी, आत्मनिर्भर और बेहतर बना सके …मेरे अभिभावकों ने भी ऐसा ही किया होगा हम भाई- बहनो के लिए ….नजरिया और सोच व्यक्तिगत होती है जो मानसिक परिपक्वता से हासिल होती है ,अनुभव से हासिल होती है….शायद इसीलिए हमारे अभिभावक हमे बगैर किसी कॉउंसलिंग के सार्थक और सफल जीवन व्यतीत करने लायक बना पाये….

हाँ !! सेमीनार में विषय विशेषज्ञ की एक बात जो वह पेरेंट्स की सहभागिता बढ़ाने के लिए बार बार कह रहीं थी मुझे सबसे ज़्यादा अपील कर रही थी ,वह यह कि ” पेरेंट्स कभी गलत नहीं होते वो जो भी करते हैं , अपनी समझ से बच्चों की भलाई के लिए करते है “….और यही शायद पैरेन्टिंग का मूलमंत्र भी है