राजा रवि वर्मा और साड़ी
“कसवु” केरल की परम्परिक साड़ी …हालांकि ये जो मैंने पहन रखी है ये केरला हैंडलूम “कसवु मल्लिका ” कोवलम से ही ली गयी है, पर परंपरागत कसवु से थोड़ी अलग कॉटन और टिश्यू की डिज़ाइनर साड़ी है ,जो आनन फानन में श्री पदम्नाभ्स्वामी मंदिर दर्शन के लिए खरीदी गयी थी और आज भी मंदिर दर्शन के लिए ही पहनी गयी है ….
….फ़िलहाल मैंने जो सोच कर लिखना शुरू किया था उससे इतर कुछ बात ऊपर लिखी लाइन्स से मेरे मन में आ रही हैं सो आज “मन की बात ” श्री पदम्नाभ्स्वामी मंदिर दर्शन वाली बात अगली बार ….
केरल , त्रिवेंद्रम , ईश्वर, साड़ी और परंपरा जैसे शब्दों से मुझे राजा रवि वर्मा की सहज ही याद हो आयी ..जी वही राजा रवि वर्मा जिन्होंने ईश्वर और उसके कुनबे के अवतारों को मूर्त स्वरुप प्रदान कर हमसे परिचित कराया था . राजा रवि वर्मा जन्म से राजा नहीं थे लेकिन अपनी अद्भुत प्रतिभा के कारण कला जगत के राजा हुए वे केरल के एक अत्यंत सुरुचि संपन्न परिवार में जन्मे थे .परिवार से उन्हें कला और साहित्य की अत्यंत परिष्कृत समझ और अभिजात दृष्टि प्राप्त हुयी .जो उनकी मिथकीय इमेजरी की विराट और विशिष्ट समझ , संवेदना और सौन्दर्यबोध के विकास में सहायक सिद्ध हुयी . ….उनकी अद्वितीय प्रतिभा के भय से तत्कालीन भारतीय और यूरोपियन चित्रकारों ने उन्हें सीखाने से मना कर दिया था . वह भारत में oil colour के प्रयोग का प्रारंभिक युग थाऔर भारतीय कला जगत में स्वीकार्य भी नहीं था . उन्होंने स्वयम के प्रयास से oil colour का उपयोग करना सीख कर महाराज और महारानी के पोट्रेट बनाये जो पेंटिंग के नायब नमूने हैं …oil colour के उपयोग के कारण वे निंदा के भागी रहे …
….उस समय भारत में चित्रकारी की राजपूताना और मुग़ल शैली प्रचलित थी जो एक आयामी होती थी इसके विपरीत राजा रवि वर्मा ने छाया और प्रकाश के बीच संयोजन से यथार्थवादी चित्रण जिसमे “perspective” उभरता है , के द्वारा भारतीय देवी -देवताओं और पौराणिक पात्रों का सजीव चित्रण किया .यह चित्रण आसान नहीं था क्योंकि आभूषण , वस्त्रविन्यास, परिवेश का कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य उपलब्ध नहीं था , जो लिखित वर्णन किया गया है ,उसीके आधार पर चित्रण किया जाना था और उन्होंने यह काम बखूबी किया शांतनु और मत्स्य्गंधा , नल -दमयंती , श्रीकृष्ण -देवकी , अर्जुन सुभद्रा , विश्वामित्र -मेनका जैसे किरदारों को कैनवास पर सजीव कर दिया . उन्होंने स्त्री देह का एक नवीन सौदर्य शास्त्र रचा उनकी चित्रकृतियों में देह की कमाश्रयी अभिव्यक्ति रंग अभिव्यक्ति में काव्यात्मक लगती है ….
…. राजा रवि वर्मा पहले व्यक्ति थे जिन्होंने देवियों के लिए साड़ी को परिधान चुना वो भी 9 गज वाली महाराष्ट्रियन साड़ी जिसके लिए उन्हें बहुत आक्रामक अलोचना का शिकार होना पड़ा बाद में भले ही वह भारतीय स्त्री की सर्वस्वीकार्य पोशाक बन गयी आज साड़ी भारतीय स्त्रियों के wardrobe का एक बड़ा स्थान घेरती है ….अभिजात्य परिधान के नाम पर …
….लिखने के लिए उनके विषय में बहुत कुछ है पर लाबोलुब्बाब इतना ही है कि अत्यंत प्रतिभाशाली होने के बावजूद अपरम्परागत अभिव्यक्ति का माध्यम और संवेदनशील विषय चुनने के कारण राजा रवि वर्मा अपने समकालीन कला मर्मज्ञों से वह सम्मान नहीं प्राप्त कर सके जिसके वास्तव में वे हकदार थे .उनकी प्रतिभा लोगों को डरती थी …
त्रिवेंद्रम की श्री चित्रकला दीर्घा में राजा रवि वर्मा की पेंटिंग्स इसी कसवु साड़ी में देखी गयीं थी ..साड़ियों को popular बनाने में उनके योगदान के चलते sareepact में उन पर इतना लिखना तो बनता है .. : )
bahut badiya, bahut sundar aur adbhut bhi. Bahut acha laga sunkar is saree ki varnan aur Raja Ravi Verma ke bareme. saree aur story jaise dud me pani. excellent.
thanks sujata